03 सितंबर 2024 पिठोरी अमावस्या का महत्त्व जानें दुर्ग भिलाई ज्योतिष लक्ष्मी नारायण से

पिठोरी अमावस्या का महत्त्व जानें दुर्ग भिलाई ज्योतिष लक्ष्मी नारायण से

03 सितंबर 2024 पिठोरी अमावस्या का महत्त्व जानें दुर्ग भिलाई ज्योतिष लक्ष्मी नारायण से

भाद्रपद मास की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 03 सितंबर, 2024 को मंगलवार के दिन आएगा। 

इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है, और श्रद्धालु पवित्र नदियों तथा धार्मिक स्थलों का दर्शन करते हैं। अमावस्या की रात में चंद्रमा के न दिखाई देने के कारण चारों ओर अंधकार छा जाता है, जिससे वातावरण में एक विशेष प्रकार की गंभीरता उत्पन्न होती है।
 

पिठोरी अमावस्या का पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, और इसकी परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस दिन से जुड़ी अनेक कथाएँ और किंवदंतियाँ जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव डालती हैं। आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक और तमिलनाडु में इसे पोलाला अमावस्या के नाम से जाना जाता है, जहाँ देवी पोलेरम्मा की पूजा का विशेष महत्व है, जिन्हें माता पार्वती का एक स्वरूप माना जाता है।
 

पिठोरी अमावस्या के दिन श्रद्धालु विशेष रूप से अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते हैं। यह दिन परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर पूजा-पाठ करने और एक-दूसरे के साथ समय बिताने का भी अवसर प्रदान करता है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपने पारिवारिक बंधनों को और मजबूत करते हैं और अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं।

पिठोरी देवी

पिठौरी अमावस्या के दिन विशेष रूप से संतानवती महिलाएं अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए व्रत का आयोजन करती हैं। इस अवसर पर, जो दंपति संतान की कामना रखते हैं, वे माता पार्वती की आराधना करते हैं। पूजा के दौरान माता को नए वस्त्र अर्पित किए जाते हैं और पूजा स्थल को सुंदर फूलों से सजाया जाता है। इस दिन व्रत का पालन करने से संतान का भाग्य सदैव उज्ज्वल बना रहता है।
 

इस विशेष दिन पर, परिवार के पूर्वजों की शांति और सुख की प्राप्ति के लिए भी प्रार्थना की जाती है। पूजा के समय देवी को सुहाग और श्रृंगार से संबंधित वस्तुएं अर्पित की जाती हैं, जिससे माता की कृपा प्राप्त होती है। यह मान्यता है कि इस पूजा के माध्यम से संतान के जीवन में सुख और समृद्धि का संचार होता है, जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है।
 

पिठौरी देवी पार्वती की पूजा का यह आयोजन केवल संतान की रक्षा के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह परिवार के समग्र कल्याण और सुख-शांति के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। इस पूजा के माध्यम से भक्तों को माता की अनुकंपा प्राप्त होती है, जो उनके जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाती है।

पिठोरी अमावस्या का व्रत, वंश वृद्धि, कष्टों से मुक्ति

पिठोरी अमावस्या का व्रत विशेष पुण्य प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में ऋण और पाप का नाश होता है। इस दिन का व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और वंश की वृद्धि होती है। इसके अलावा, जो कार्य लंबे समय से रुके हुए हैं, वे भी शीघ्रता से संपन्न होते हैं। मानसिक शांति की प्राप्ति होती है और पाप ग्रहों के कारण उत्पन्न कष्टों से मुक्ति मिलती है। यदि जन्मकुंडली में पितृ दोष है, तो यह व्रत विवाह और संतान सुख में आने वाली बाधाए ख़त्म होती है।
 

पिठोरी अमावस्या के दिन व्रति को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद, सूर्य उदय के समय सूर्य को जल अर्पित करना आवश्यक है। यह क्रिया न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान, पिंड दान और तर्पण का विशेष महत्व है। यह क्रियाएँ पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करती हैं।
 

इस दिन गरीबों को हलुआ-पूरी बांटने की परंपरा है, जो परिवार की खुशहाली के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसके साथ ही, योगिनी पूजा का आयोजन भी किया जाता है। विधि-विधान से पूजा करने के बाद आरती की जाती है और पंडितों को भोजन कराया जाता है। इस प्रकार, पिठोरी अमावस्या का व्रत न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाता है, बल्कि सामाजिक समरसता और परिवारिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है।

 

पिठोरी अमावस्या के दिन योगनी एवं सप्तमातृका पूजन महत्त्व

पिठोर अमावस्या का दिन विशेष रूप से योगिनी और सप्तमातृका पूजन के लिए समर्पित है। देवी आदी शक्ति की विभिन्न शक्तियों को योगिनी के रूप में पूजा जाता है, जो विभिन्न स्वरूपों में उपस्थित होती हैं। तंत्र पूजा में इनका आह्वान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, विशेषकर शाक्त संप्रदाय में, जहां शक्ति की पूजा का विशेष स्थान है। अमावस्या और पूर्णिमा के अवसर पर इन शक्तियों का पूजन किया जाता है, जिससे साधक अष्ट या चौंसठ योगिनियों के माध्यम से शक्ति की प्राप्ति कर सकता है। ये सभी शक्तियां माता पर्वती की सखियां मानी जाती हैं, जिनमें से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं को भी शामिल किया जाता है।
 

इस विशेष दिन पर, जो व्यक्ति तंत्र या योग विद्या से जुड़ा हुआ है, उसके लिए यह समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। देवी पूजन की प्रक्रिया आरंभ करने से पूर्व, साधक को स्नान, ध्यान आदि से निवृत्त होकर अपने पितृगण, इष्टदेव और गुरु का आशीर्वाद लेना चाहिए। यह आशीर्वाद साधक को शक्ति और सफलता की प्राप्ति में सहायक होता है। भगवान शिव की पूजा भी इस दिन का एक अभिन्न हिस्सा है, जो साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
 

पिठोर अमावस्या के दिन साधक को माता का पूजन करना अनिवार्य होता है, जिससे वह शक्ति की प्राप्ति कर सके। यह दिन साधना और तंत्र विद्या के लिए एक विशेष अवसर प्रदान करता है, जिसमें साधक अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ देवी की आराधना करता है। इस दिन की विशेषता यह है कि साधक को अपनी साधना में गहराई से उतरने का अवसर मिलता है, जिससे वह अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ा सकता है। इस प्रकार, पिठोर अमावस्या का दिन साधक के लिए एक महत्वपूर्ण और फलदायी अवसर है। 

 

पिठोरी अमावस्या महत्व

पिठोरी अमावस्या को पिठोरी, पिथौरा और पिठोर जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से दुर्गा माता की पूजा का महत्व है। महिलाएं इस दिन संतान सुख की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं। मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने इस व्रत के महत्व को सभी के सामने रखा और इसके द्वारा मिलने वाले सुखों का वर्णन किया। इंद्र की पत्नी शचि ने भी इस व्रत को अपनाया और इसके फलस्वरूप संतान सुख एवं परिवार की समृद्धि प्राप्त की।
 

पिठोरी अमावस्या का दिन संतान के सुख और उसकी लंबी आयु की कामना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को अनेक लाभ मिलते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन की पूजा से परिवार में सुख-समृद्धि और संतानों की वृद्धि होती है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत करने में सहायक होता है।
 

साल भर में आने वाली अमावस्या का संबंध उस माह के नाम से होता है, और प्रत्येक अमावस्या का अपना अलग महत्व और प्रभाव होता है। इन अमावस्या के दौरान पूजा, पाठ, स्नान, दान और उपासना जैसे कार्य करने से व्यक्ति की मानसिक, आत्मिक और भौतिक स्थिति में सुधार होता है। इस प्रकार, पिठोरी अमावस्या का व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में सुख और समृद्धि लाने का एक साधन भी है।

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